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क्या चांद पर होती है उल्टी बारिश पुरी जानकारी ?

क्या चांद पर होती है उल्टी बारिश


क्या चांद पर होती है उल्टी बारिश ऐसी अनोखी बारिश चांद पर कैसे हो सकती है


क्या यह कारण सही हैं की चांद पर होती है उल्टी बारिश | क्या वहां पर पानी नीचे से ऊपर की तरफ गिरता है |

दोस्तों जब बारिश होती है तो पानी की बूंदे आसमान से जमीन पर गिरती है लेकिन क्या चांद पर इसका उल्टा होता है क्या बारिश ऊपर से जमीन पर गिरने के बजाय जमीन से ऊपर की तरफ गिरती है | 

दरअसल यह एक ऐसा सवाल है जिसे दुनिया भर के वैज्ञानिको को लंबे समय तक परेशान किया था | आज इस आर्टिकल में हम इस रहस्य को बेनकाब करेंगे ! 

यह ब्रह्मांड आज की दुनिया के वैज्ञानिकों के लिए अबूझ हो गया है इसके भीतर सैकड़ों रहस्य छुपे हैं हालाकी इंसान सालों से इन रहस्यों को जानने की कोशिश कर रहे हैं दुनिया भर के साइंटिस्ट पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या पृथ्वी के अलावा ऐसा कोई ग्रह हैं जहा पर जीवन है | क्या कोई ऐसी जगह भी है जा इंसानी वजूद के सबूत मिले | क्या कोई ऐसा ग्रह है जहां पर इंसानों के लिए हवा और पानी दोनों ही मिल सकें

क्या चाँद पर होती है उल्टी बारिश


वैज्ञानिकों को कोई ठोस सवाल मिल पाता उससे पहले एक ऐसा सवाल उनके सामने आया जिसने हर किसी की नींदे उड़ा दी | एक बार चांद की सतह पर पानी मिलने के संकेत मिले | कि पानी सिरप चाँद की सत्ता पर नहीं उसके बाद छोटे से वायुमंडल में भी है | इस खुलासे ने ब्रह्मांड के कई अनसुलझे सवाल मैं एक और सवाल खोल दिया क्या चांद पर उल्टी बारिश होती है ! 

दोस्तों इस रहस्य का पर्दा उठाने से पहले कुछ बेहद इंपोर्टेबल बातें जानने होगी क्या आप जानते हैं कि दुनिया का वह कौन सा देश है की सबसे पहले पता लगाया था कि चांद पर पानी है या नहीं अगर नहीं जानते तो जान लीजिए वह देश कोई और नहीं हमारा हिंदुस्तान है दरअसल वो वक्त था | 2008 का जब अपने देश हिंदुस्तान की स्पीच एजेंसी इसरो ने एक अंतरिक्ष यान चंद्रमा की तरह रवाना किया 22 अक्टूबर 2008 को इंडियन स्पीच एजेंसी इसरो के तरफ से चंद्रयान की लांच की इसके 22 दिन बाद चांद की दक्षिणी ध्रुव इसरो ने अपनी सफलता के निशान ढूंढ लिए

यह निशान सोडे मूल इंपैक्ट प्रो mip पर हमारा देश का तिरंगा लहराया गया | 14 नवंबर 2008 चांद से 102 किलोमीटर पर चंदरयान चक्कर इस इंटैक्ट प्रो. यानी कि mip से अलग हुआ बहुत तेजी से चांद की सत्ता की तरफ जा रहा था एमआईपी को 36 मिनट रह गए चांद की सत्ता पर लैंड करने में वह से छः हजार प्रति घंटा किलोमीटर की रफ्तार से चांद की सतह पर टकराया इस टक्कर से इंटैक्ट प्रो पूरी तरीके से टूट गए

उससे पहले ही mip ने काम कर दिया |जिसने इतिहास रच दिया मूल इंटैक्ट प्रो चांद की दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद पानी की बूंदे बर्फ के फोटो सेंटर में भेज दिए उसने चाँद के चारों तरफ शक्कर लगा रहे उसने और उसने सिस्टर को मैसेज भेज दिया था कि मैं जहां गिर रहा हूं वहां पर बर्फ की शक्ल में पानी की बूंदे हैं | 

25 सितंबर 2009


यह मैसेज हमारी टीम इसरो एजेंसी को भी मिल चुका था | इसके बाद इंडियन स्पेस की सेंटी सोने चंद्रयान-1 के मूल इंपैक्ट प्रो से मिले डेटा को एनालाइज किया | और करीब 10 महीने बाद कि 25 सितंबर 2009 को इसरो के वैज्ञानिकों ने बताया किसान के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित 11 टन क्रेटर में पानी बर्फ के रूप में मौजूद है उस समय घटना हुई की अमेरिका एजेंसी नासा ने 19 सितंबर 2009 को कहां कि चंद्रयान मैं लगे उपकरण मूल इंटेक्स प्रो मिनरलोजी यानी कि M3 ने पानी खोज लिया | 

तब दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने बताया कि चंद्रयान-1 के mip ने चांद पर पानी खोज लिया था और नासा की अंतरिक्ष एजेंसी ने मूल इंटेक्स प्रो अब खोज पर अपनी मुहर लगा दी दरअसल मूल इंपैक्ट प्रो पूर्व देश के राष्ट्रपति और दुनिया के महान वैज्ञानिकों में से एक डॉक्टर अब्दुल कलाम सोच का नतीजा मैं यह कहने पर इसरो के वैज्ञानिकों मूल इंपैक्ट प्रो बनाया था उस वक्त मिसाइल मैन कलाम साहब ने कहा था कि मैं चाहता हूं कि भारतीय वैज्ञानिक चांद के एक हिससे पर अपना एक निशान सोडे और इस काम में भारतीय वैज्ञानिकों को पीछे नहीं होना चाहिए

मूल इंटैक्ट प्रो मौजूदगी उपकरणों के सीरियस स्पेस एजेंसी इसरो ने चाँद दक्षिणी ध्रुव पर पानी की खोज की थी यह उपकरण थे | रडार अल्टीमीटर वीडियो इमेजिंग सिस्टम और मांस स्पेक्ट वर्ल्डोमीटर आदि चंद्रयान-1 की ऑर्बिटल से अलग होते ही तीनों ने काम करना शुरू कर दिया था चांद की सतह पर टक्कर से पहले करीब 25 मिनट की उड़ान के दोरान मूल इंपैक्ट प्रो पेट्रोल के तीनों उपकरणों ने ऑर्बिटल को डाटा भेजना शुरू कर दिया | चांद पर लैंड करने से पहले ऑर्बिटल ने अपनी एजेंसी को बहुत सारा डाटा भेज दिया था | 

क्या चांद पर होती है उल्टी बारिश


जिसके आधार पर इसरो के वैज्ञानिकों ने चांद पर पानी मौजूद होने का एलान कर दिया | यह वह जानकारी थी जिसे दुनिया भर के वैज्ञानिक लंबे समय से पता करने का कोशिश कर रहे थे | 1960 के दौरान अमेरिकन एजेंसी नासा ने सबसे पहले इंसानों को चाँद पर भेजने की प्लानिंग की गई | और 1969 में अपोलो मिशन के जरिए पहली बार चाँद की सतह पर कदम रखा था | हालांकि यह बात चाच थी यह किसी को भी नहीं पता साल 1969 से लेकर 1972 के बीच अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 5 बार इंसानों को चंद्रमा पर भेज दिया | 

के बावजूद नासा सबूत नहीं जुटा पाया चांद पर पानी है या नहीं नासा ने अपोलो मिशन करोड़ों अरबों रुपए  खर्च कर दिए | इसके बावजूद दिखावे से नहीं कह पाए की चाँद पर पानी है या नहीं | बस यह कहते रह गए कि चाँद पर पानी हो सकता है | हालांकि हिंदुस्तान स्पेस एजेंसी इसरो ने साल 2008 में विदेशी अंतरिक्ष यान चंद्रयान-1 की मदद से इस बात का दावा कर दिया कि चाँद की सतह पर भी पानी है |मौजूद है

2008 चंद्रमाँ पर पानी के निशान 


क्या वहां पर भी बारिश होती है | जाने की शान पर अमेरिकन एजेंसी 1969 मैं इंसानों को भेजने का दावा किया था भारत में उसी स्थान पर 2008 में पानी होने का दावा कर दिखाया हिंदुस्तान की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो की फौज गहरे समंदर में भी देश कीमती खजाने को भी इसके बाद पूरी दुनिया की सुर्खियों में छा गया पूरी दुनिया की निगाहें आने लग गई इसरो ने वह कर दिखाया था जो अमेरिका जैसे ताकतवर मुल्क भी दशकों मैं नहीं कर पाया था

साल 2013 में नासा ने एक और मिशन लॉन्च किया | जिसने एक रोबोट एक मशीन के जरिए चांद के वायुमंडल का बारीकी से अध्ययन करना था हैरानी की बात यह है कि इस रिसर्च में पता चला कि चाँद के बिल्कुल ना के बराबर मौजूद वायुमंडल में भी पानी मौजूद हैं | इसके बाद साइंटिस्ट इस बात का पता लगाने में जुट गई | कि आखिरकार चांद की वायुमंडल में पानी कहां से आया है चांद के पास ना तो अच्छा खासा वायुमंडल है | है भी तो ना के बराबर और ना ही चंद्रमा के आसपास बादल है तो यह पानी आया कहां से वैज्ञानिकों के लिए यह एक इंटरेस्टिंग टॉपिक था

दोस्तों आपने टूटते तारों को तो देखा होगा दरअसल यह एक पिंड होते हैं जो हमें पूछ की तरह टूटते नजर आते हैं यह कहां से आते हैं | दरअसल यह चट्टानों चट्टानों के टुकड़ों वह धूल से बने होते हैं जो धरती के वायुमंडल में दस्तक देते हैं पूरी तरीके से जल जाते हैं जब ऐसे ही उल्कापिंड चांद की तरफ बढ़ता है वहां कोई वातावरण नहीं होने के कारण वह चांद की सतह से टकराते हैं इस टक्कर से चांद की सर्विस में कंपन होता है और चाँद पतली सी परत के नीचे ही पानी है | 


मतलब जब उल्का पिंड चांद की सतह से टकराता है तो उस टक्कर से इतनी एनर्जी रिलीज होती है | कि चंद्रमा की सतह के नीचे पानी मौजूद तेज रफ्तार के साथ बार आ जाता हैं | और चंद्रमा पर ग्रामीण की कमी होने के कारण यह  वोटर पार्टीकल होने के कारण पानी नीचे  ऊपर आता है | यह ही वह पानी है जिसे ना सके मशीन अंतरिक्ष ने डिटेक्ट किया था साथ ही यही क्रिया है जिसे वैज्ञानिकों को लगता है उल्टी बारिश होती है मतलब पानी ऊपर से नीचे की तरफ नहीं नीचे से ऊपर की तरफ आता है 


दोस्तों इस रिसर्च ने ही हमें बताया कि चंद्रमा के दोनों पोस्ट पर भी नहीं पूरे चंद्रमा पर ही पानी है | हालांकि यह पानी बहुत ही कम मात्रा में है दोस्तों भारत समेत दुनिया भर के स्पेस एजेंसी अंतरिक्ष के रहस्यों से पर्दा हटाने की कोशिश खोज में लग गई है | आने वाले वक्त में इसरो चंद्रमा पर अपने और यान भेजने कोशिश में जूटा है |  :- wikipedia

दोस्तों आज हमने चांद के बारे में जानकारी दी की क्या चांद पर होती है उल्टी बारिश | ऐसे ही सवाल आपको जानने के लिए हमारी वेबसाइट पर जरूर आई

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